भारतीय अंक प्रणाली
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भारतीय अंक प्रणाली को पश्चिम के देशों में हिंदू-अरेबिक अंक प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि यूरोपीयन देशों को इस अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ। भारतीय अंक प्रणाली में 0 को मिला कर कुल 10 अंक होते हैं। संसार के अधिकतम 10 अंकों वाली अंक प्रणाली भारतीय अंक प्रणाली पर ही आधारित हैं और भारतीय अंक प्रणाली का आधार देवनागरी अंक प्रणाली है।
अनुक्रमणिका |
[बदलें] देवनागरी अंक
नीचे देवनागरी अंकों के नाम व प्रकार दिये जा रहे हैं
देवनागरी अंक |
अरेबिक/यूरोपियन अंक |
संस्कृत में नाम |
---|---|---|
० | 0 | शून्य |
१ | 1 | एक: |
२ | 2 | द्वयः |
३ | 3 | त्रयः |
४ | 4 | चतुर्थः |
५ | 5 | पञ्चम: |
६ | 6 | षष्ठम: |
७ | 7 | सप्तम: |
८ | 8 | अष्टम: |
९ | 9 | नवम: |
[बदलें] उद्गम
इतिहासकारों के अनुसार ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में भारत में ब्राह्मी अंकों का प्रचलन था। पुणे एवं मुंबई के क्षेत्र की गुफाओं में मिले शिलालेखों में तथा उत्तर प्रदेश में मिले प्राचीनकाल के सिक्कों में ब्राह्मी अंक पाये गये हैं। ब्राह्मी अंकों में दशमलव प्रणाली तथा शून्य का प्रयोग नहीं होता था।
[बदलें] दशमलव प्रणाली
अप्रामाणिक दस्तावेज़ों के अनुसार भारत में शून्य, जो कि दशमलव प्रणाली का आधार है, का आविष्कार इस्वी सन् की प्रथम शताब्दी में हो चुका था। किन्तु भारत में शून्य के आविष्कार के प्रामाणिक दस्तावेज़ पाँचवी शताब्दी में ही मिले हैं। ग्वालियर में पाये गये शिलालेख, जो कि ईस्वी सन् 870 का है, में शून्य के संकेत पाये गये हैं। इस शिलालेख को सभी इतिहासकारों ने एक मत से मान्यता दी है।
शून्य के आविष्कार हो जाने पर भारत में दस अंको वाली अंक प्रणाली का प्रचलन आरम्भ हो गया जो कि इस संसार में प्रचलित आधुनिक अंक प्रणालियों का आधार बनी।
[बदलें] भारतीय अंक प्रणाली का अरब के द्वारा अभिग्रहण
ईस्वी सन् के सातवीं शताब्दी में अरब ने भारतीय अंक प्रणाली का अभिग्रहण कर लिया। अरब में भारतीय अंकों को गुबार अंक और भारतीय अंक प्रणाली को हिंदुसा अंक प्रणाली के नाम से जाना जाने लगा। हिंदुस्तान से इस अंक प्रणाली के प्राप्त होने के कारण ही वहाँ इसे हिंदुसा नाम दिया गया।
अरब के अल-किफ्ती नामक विद्वान के कालक्रम विवरण के अनुसार "कैलिफ-अल-मन्सूर (सन् 776) के दरबार में भारत से एक विद्वान आया जो सिद्धांत शास्त्र तथा खगोल शास्त्र का प्रकांड पण्डित था। वह समीकरण के द्वारा गणना करना भी जानता था। उसे कैलिफ-अल-मन्सूर ने अरब में भारतीय गणित पद्धति की शिक्षा के लिये नियुक्त किया ......."
[बदलें] यूरोपियन देशों के द्वारा अभिग्रहण
अन्य यूरोपियन देशों ने भारतीय अंक प्रणाली को अरब से सीखा। चूँकि उन्हें यह अंक प्रणाली अरब से मिली थी इसलिये उन्होंने इसका नाम अरेबिक अंक प्रणाली रख दिया। कालान्तर में इसका नाम हिंदू-अरेबिक अंक प्रणाली हो गया।
[बदलें] विद्वान गणितज्ञ लाप्लास के विचार
फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार "भारत ने संख्याओं के प्रदर्शन के लिये दस अंकों वाली एक अति निपुण प्रणाली दिया है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यदि इस प्रणाली के अन्य गुणों की उपेक्षा भी कर दी जाये तो भी इसके सरलतम होने कदापि अस्वीकार नहीं किया जा सकता
[बदलें] वर्तमान स्वरूप
समय समय में तथा देश देश में भारतीय अंक प्रणाली के अंकों के संकेत में अनेक परिवर्तन हुये। अन्त में इन अंकों का स्वरूप 0, 1, 2, 3,.... के रूप में हो गया और इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता मिल गई।
आधुनिक अंक एवं अंक प्रणाली वास्तव में भारतीय ही हैं। वर्तमान में इन आधुनिक अंकों को "भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप" (International form of Indian Digits) के नाम से जाना जाता है।