१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता सन्ग्राम
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१८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम,सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रितानी शासन के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह था । यह विद्रोह दो साल तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला । इस विद्रोह की शुरुआत छावनीं क्षेत्रों में छोटी झड्पों तथा आगजनी से हुई परन्तु जनवरी माह तक इसने एक बडा रुप ले लिय़ा । इस विद्रोह के अन्त में ईस्ट ईण्डिया कंपनी का भारत में शासन खत्म हो गया और ब्रितानी सरकार का प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ हो गया जो कि अगले ९० सालों तक चला ।
अनुक्रमणिका |
[बदलें] भारत में ब्रितानी विस्तार का सन्क्षिप्त इतिहास
ईस्ट ईण्डिया कंपनी ने राबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में सन 1757 में प्लासी का युद्ध जीता। युद्ध के बाद हुई संधि में अन्ग्रेजों को बंगाल में कर मुक्त व्यापार का अधिकार मिल गया । सन 1764 में बक्सर का युद्ध जीतने के बाद अन्ग्रेजों का बंगाल पर पूरी तरह से अधिकार हो गया । इन दो युद्धों में हुई जीत ने अन्ग्रेजों की ताकत को बहुत बडा दिया, और उनकी सैन्य क्षमता की को परम्परागत भारतीय सैन्य क्षमता से श्रेष्ठ सिद्ध कर दिया । कंपनी ने इसके बाद सारे भारत पर अपना प्रभाव फ़ैलाना शुरू कर दिया ।
सन 1845 में ईस्ट ईण्डिया कंपनी ने सिन्ध क्षेत्र पर रक्तरंजित लडाई के बाद अधिकार कर लिया। सन 1839 में महाराजा रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद कमजोर हुए पंजाब पर अन्ग्रेजों ने अपना हाथ बडाया और सन 1848 में दूसरा अन्ग्रेज - सिख युद्ध हुआ । सन 1849 में कंपनी का पंजाब पर भी अधिकार हो गया। सन 1853 में आखरी मराठा पेशवा बाजी राव के दत्तक पुत्र नाना साहब की पदवी छीनली गयी और उनका सालाना खर्चा बंद कर दिया गया ।
सन 1854 में बरार और् सन 1856 में अवध को कंपनी के राज्य में मिला लिया गया ।
[बदलें] विद्रोह के कारण
सन 1857 के विद्रोह के विभिन्न राजनैतिक,आर्थिक,धार्मिक,सैनिक तथा सामाजिक कारण बताये जाते हैं ।
[बदलें] वैचारिक मतभेद
कई ईतिहासकारों का मानना है कि उस समय के जनमानस में यह धारणा थी कि अन्ग्रेज उन्हें जबर्दस्ती या धोखे से ईसाई बनाना चाहते थे। यह पूरी तरह से गलत भी नहीं था, कुछ कंपनी अधिकारी धर्म परिवर्तन के कार्य में जुटे थे। हालांकि कंपनी ने धर्म परिवर्तन को मंजूरी कभी नहीं दी। कंपनी इस बात से अवगत थी कि धर्म, पारम्परिक भारतीय समाज में विद्रोह का एक कारण बन सकता है।
डाक्ट्रिन औफ़ लैप्स की नीति के अन्तर्गत अनेक राज्य जैसे झाँसी,अवध,सतारा,नागपुर और संबलपुर को अन्ग्रेजी राज्य में मिला लिया गया और इनके उत्तराधिकारी राजा से अन्ग्रेजी राज्य से पेंशन पाने वाले कर्मचारी बन गये। शाही घराने, जमींदार और सेनाओं ने अपनेआप को बेरोजगार और अधिकारहीन पाया । ये लोग अन्ग्रेजों के हाथों अपनी शरमिन्दगी और हार का बदला लेने के लिये तैयार थे। लौर्ड डलहौजी के शासन के आठ सालों में दस लाख वर्गमील क्षेत्र को कंपनी के कब्जे मे ले लिया गया। इसके अतिरिक्त ईस्ट ईण्डिया कंपनी की बंगाल सेना में बहुत से सिपाही अवध से भर्ती होते थे, वे अवध में होने वाली घटनाओं से अछूते नही रह सके। नागपुर के शाही घराने के आभूषणों की कलकत्ता में बोली लगायी गयी इस घटना को शाही परिवार के प्रति अनादर के रुप में देखा गया ।
भारतीय कंपनी के सख्त शासन से भी नाराज थे जो कि तेजी से फ़ैल रहा था और पश्चिमी सभ्य्ता का प्रसार कर रहा था । अन्ग्रेजों ने हिन्दू और मुसल्मानों के उस समय माने जाने वाले बहुत से रिवाजो को गैरकानूनी घोषित कर दिया जो कि अन्ग्रेजों मे असमाजिक माने जाते थे। इसमें सती प्रथा पर रोक लगाना शामिल था। यहां ध्यान देने योग्य बात यह् है कि सिखों ने यह बहुत पहले ही बंद कर दिया था और बंगाल के प्रसिद्ध समाज सुधारक राजा राममोहन राय इस प्रथा को बंद करने के पक्ष में प्रचार कर् रहे थे। ईन कानूनों ने समाज के कुछ पक्षों मुख्य्त् बंगाल मे क्रोध उत्पन्न कर दिया । अन्ग्रेजों ने बाल विवाह प्रथा को समाप्त किया तथा कन्या भ्रूण हत्या पर भी रोक लगायी। अन्ग्रेजों द्वारा ठगी का खात्मा भी किया गया परन्तु यह सन्देह अभी भी बना हुआ है कि ठग एक धार्मिक समुदाय था या सिर्फ़ साधारण डकैतों का समुदाय ।
ब्रितानी न्याय व्यवस्था भारतीयों के लिये अन्यायपूर्ण मानी जाती थी । सन 1853 में ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री लौर्ड अब्रेडीन ने प्रशासनिक सेवा को भारतीयों के लिये खोल दिया परन्तु कुछ प्रबुद्ध भारतीयों के हिसाब से यह सुधार काफ़ी नही था । कंपनी के अधिकारियों को भारतीयों के खिलाफ़् अदालत में अनेक अपीलों का अधिकार प्राप्त था । कंपनी भारतीयों पर भारी कर भी लगाती थी जिसे न चुकाने की स्थिति में उनकी संपत्ति अधिग्रहित कर् ली जाती थी।
कंपनी के आधुनिकीकरण के प्रयासों को पारम्परिक भारतीय समाज में सन्देह की दृष्टि से देखा गया । लोगो ने माना कि रेल्वे जो बाम्बे से सर्व्प्रथम चला एक दानव है और लोगो पर विपत्ती लायेगा ।
परन्तु बहुत से इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इन सुधारों को बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है क्योंकी कंपनी के पास इन सुधारों को लागू करने के साधन नही थे और कलकत्ता से दूर उनका प्रभाव नगन्य था [१] ।
[बदलें] आर्थिक मतभेद
[बदलें] राजनैतिक मतभेद
[बदलें] सिपाही
[बदलें] एनफ़ील्ड बंदूक
[बदलें] अफ़वाहें
[बदलें] युद्ध का प्रारम्भ
[बदलें] मंगल पांडेय
[बदलें] मेरठ का घुडसवार दस्ता
[बदलें] समर्थन तथा विरोध
[बदलें] प्रारम्भिक अवस्था
[बदलें] दिल्ली
[बदलें] कानपुर
[बदलें] लखनऊ
[बदलें] झांसी
[बदलें] अन्य क्षेत्र
[बदलें] ब्रितानी दमन
[बदलें] तथ्य
- ↑ Eric Stokes “The First Century of British Colonial Rule in India: Social Revolution or Social Stagnation?” Past and Present №.58 (Feb. 1973) pp136-160
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम | |
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इतिहास: | उपनिवेश - ईस्ट ईण्डिया कंपनी - प्लासी का युद्ध - बक्सर का युद्ध - ब्रितानी भारत - फ्रांसीसी भारत - पुर्तगाली भारत |
दर्शनशास्त्र: | भारतीय राष्ट्रवाद - स्वराज - गान्धीवाद - सत्याग्रह - हिन्दू राष्ट्रवाद - भारतीय मुस्लिम राष्ट्रवाद - स्वदेशी - साम्यवाद |
घटनायें तथा आन्दोलन: | १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता सन्ग्राम - बंगाल का विभाजन - क्रान्तिकारी आन्दोलन - चंपारण और् खेडा सत्याग्रह - जंलिया वाला बाग नरसंहार - असहयोग आन्दोलन - झंडा सत्याग्रह - बारडोली सत्याग्रह - साइमन कमीशन - नेहरू रिपोर्ट - पूर्ण स्वराज - नमक सत्याग्रह - १९३५ का कानून - क्रिप्प्स् मिशन - भारत छोडो आन्दोलन - आजाद हिन्द फ़ौज - बंबई का विद्रोह |
संस्थायें: | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस - गदर पार्टी - स्वराज आन्दोलन - खुदाई खिदमतगार - स्वराज पार्टी - अनुशीलन समिती |
भारतीय नेता: | मंगल पाण्डेय - रानी लक्ष्मीबाई - बाल गंगाधर तिलक - गोपाल क्र्ष्ण गोखले - लाला लाजपत राय - बिपिन चन्द्र पाल - महात्मा गांधी - सरदार वल्लभ भाई पटेल - नेताजी सुभाषचंद्र बोस - बादशाह खान - जवाहरलाल नेहरू - मौलाना अबुल कलाम आज़ाद - चन्द्र शेखर आजाद - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी - भगत सिंह - सरोजिनी नायडु - पुरूषोत्तम दास टंडन - तंगतुरी प्रकाशम |
ब्रितानी राज: | राबर्ट क्लाईव - जेम्स औटरम - डलहौजी - ईरविन - विक्टर होप - माउन्ट्बेटन |
स्वतन्त्रता: | १९४६ का मंत्रिमण्डल - १९४७ का भारतीय स्वतन्त्रता कानून - भारत का विभाजन - भारत का राजनैतिक एकीकरण - भारतीय संविधान |