लगे रहो मुन्नाभाई
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लगे रहो मुन्नाभाई | |
लगे रहो मुन्नाभाई का पोस्टर |
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निर्देशक | राजकुमार हिरानी |
निर्माता | विधु विनोद चोपडा |
पटकथा | राजकुमार हिरानी, अभिजात जोशी, विधु विनोद चोपडा |
मुख्य कलाकार | संजय दत्त, अरशद वारसी, विद्या बालन, दिया मिर्जा, बोमन ईरानी |
संगीत निर्देशक | शांतनु मोइत्रा |
छायांकन | मुरलीधरन सीके |
संपादन | राजकुमार हिरानी |
वितरक | विधु विनोद चोपडा |
रिलीज़ तिथी | 1 सितंबर, 2006 |
अवधि | 130 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
आईएमडीबी पर जानकारी |
लगे रहो मुन्ना भाई 2006 में बनी हिन्दी फिल्म है। यह 2003 में बनी हिंदी फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस का सीक्वल यानि दूसरा भाग है। इस फिल्म के निर्माता विधु विनोद चोपडा है, मुख्य कलाकार है - संजय दत्त, अरशद वारसी, विघा बालन, दिया मिर्ज़ा और बोमन ईरानी। दूसरा भाग होने के उपरांत भी लगे रहो... की कहानी किसी भी तरह से पिछ्ली फिल्म से संबंधित नहीं है। इस फिल्म के मुख्य किरदारों के नाम मुन्ना और सर्किट है जो इसके प्रथम भाग मुन्नाभाई एमबीबीएस में भी थे।
अनुक्रमणिका |
[बदलें] सारांश
'लगे रहो मुन्नाभाई' आगे की 21वी सदी के शुरूआत के भारतीयो के सोच से जुड़ी हुई कहानी है। इसमें हँसी के फव्वारे के साथ दिल को छू लेने वाला संदेश देने की कोशिश की गई है।
मुन्ना (संजय दत्त) एक गुंडा है और प्रसिद्ध रेडियो जॉकी जाह्नवी (विद्या बालन) की आवाज का दीवाना है। मुन्ना की जिंदगी खूबसूरत हो गई है। उसका दादागिरी का धंधा अच्छा चल रहा है और वह रोज घंटों रेडियो सुनता है..जाह्नवी के साथ शादी के सपने देखता है। इस बीच बस एक छोटी सी समस्या आ गई है। जाह्नवी मुन्ना को इतिहास का प्रोफेसर समझती है और एक दिन भोलेपन में मुन्ना को अपने परिवार में इतिहास का व्याख्यान देने के लिए भी बुला बैठती है। अब बेचारा मुन्ना क्या करे? बस इसके अलावा सब कुछ ठीक चल रहा है अब मुन्ना को इस बात का हल चाहिए। सर्किट एक नए आइडिया के साथ आता है और फिर मुन्ना के जीवन में अनोखी घटना घटती है।
वह महात्मा गाँधी से प्रत्यक्ष रूप से मिलता है। हालांकि बाद में यह पता चलता है कि मुन्ना को यह आभास मात्र होता है।
बोमन ईरानी का पात्र एक चालाक व्यक्ति हैं जो जाह्नवी के भवन को हड़पना चाहता है।
[बदलें] गांधीगिरी का उद्गम
इस फिल्म ने हिन्दी भाषा को एक नया शब्द गांधीगिरी प्रदान किया है जो आजकल हर आम और खास की जुबान पर है। वैसे तो इस शब्द को लेकर खासा विवाद भी हुआ है और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि गिरी प्रत्यय की व्यंजना प्रीतिकर नहीं होती। पर गांधी विचार जैसे अतिशय गंभीर विषय को इसमें बड़े ही हल्के-फुल्के अंदा और मनोरंजक शैली में प्रस्तुत किया गया है, और वह भी विषय की गंभीरता को किंचित मात्र भी कम किये बगैर, यह इसकी बहुत बड़ी विशेषता है।[१]
[बदलें] अन्य जानकारियाँ
फिल्म में अभिषेक बच्चन एक अतिथि भूमिका में है। महात्मा का पात्र निभाया है दिलीप प्रभावालकर ने। अन्य भूमिकाओं में है: जिमी शेरगिल, दिया मिर्ज़ा, कुलभूषण खरबंदा, परीक्षित साहनी और सौरभ शुक्ला।
फिल्म का संगीत दिया है, शांतनु मोइत्रा ने। फिल्म के गीत है:
- 'समझो हो ही गया'
- 'बोले तो बोले कैसी होगी हाय'
- 'पल-पल हर पल'
मुरलीधरन सीके ने फिल्म का चित्रांकन की है।
[बदलें] यह भी देखें
- मन मोहने वाली लगे रहो मुन्नाभाई : फिल्म पत्रकार कोमल नाहटा की समीक्षा
[बदलें] बाहरी कडियाँ
[बदलें] सम्बन्ध
- ↑ घनश्यामप्रसाद सनाढय. "गांधीगिरी !", 1 अक्टुबर, 2006.