गौतम बुद्ध
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गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे । राजकिमार सिद्धार्थ के रूप में उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व तथा मृत्यु 483 ईस्वी पूर्व हुई थी । उनको इस दुनिया के सबसे महान व्यक्तियों में से एक माना जाता है ।
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[बदलें] जीवनी
[बदलें] जन्म
बुद्ध गौतम गोत्र के थे और उनका सत्य नाम सिद्धार्थ गौतम था । उनका जन्म लुंबिनी, कपिलवस्तु (शाक्य महाजनपद की राजधानी) की पास की जगह, में हुआ था । लुंबिनी के ठीक स्थान पर, जो दक्षिण मध्य नेपाल में है, महाराज अशोक ने तीसरी शताबदी ईसा पूर्व में एक स्तम्भ बनाया था, बुद्ध के जन्म के गुणगान में ।
[बदलें] बाल्यकाल
सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन थे, शाक्यों के राजा । परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता उनके जन्म के कुछ देर बाद मर गयी थी । कहानी जाती है कि फ़िर एक ऋषि ने सिद्धार्थ से मिलकर कहा कि वे या तो एक महान राजा बनेंगे, या फ़िर एक महान साधु । इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोदान ने अपनी योग्यता की हद तक सिद्धार्थ को दुःख से दूर रखने की कोशिश की । फ़िर भी, २९ वर्ष की उम्र पर, उनकी दृष्टि चार दृश्यों पर पड़ी (संस्कृत - चतुर निमित्त) - एक बूढ़े अपाहिज आदमी, एक बीमार आदमी, एक मुरझाती हुई लाश, और एक साधु । इन चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ समझ गये कि सब का जन्म होता है, सब का बुढ़ापा आता है, सब को बीमारी होती है, और एक दिन, सब की मौत होती है । उन्होने अपना धनवान जीवन, अपनी जाति, अपनी पतनी, अपने बच्चे, सब को छोड़कर बहकते साधु का जीवन अपना लिया ताकी वे जन्म, बुढ़ापे, दर्द, बीमारी, और मौत के बारे में कोई उत्तर खोज पाएं ।
[बदलें] सत्य की खोज
सिद्धार्थ ने दो ब्राह्मणों के साथ अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने शुरू किये । वे उचित ध्यान पा पएं, परंतू उन्हे उत्तर नहीं मिले । फ़िर उन्होने तपस्या करने की कोशिश की । वे इस कार्य में भी प्रवीण निकले, अपने दुरुओं से भी ज़्यादा, परंतु उन्हे अपने प्रश्नों के उत्तर फ़िर भी नहीं मिले । फ़िर उन्होने कुछ साथी इकठ्ठे किये और चल दिये अधिक कठोर तपस्या करने । ऐसे करते करते छः वर्ष बाद, भूख के कारण मरने के करीब-करीब से गुज़रकर, बिना अपने प्रश्नों के उत्तर पाएं, वे फ़िर कुछ और करने के बारे में सोचने लगे । इस समय, उन्हे अपने बचपन का एक पल याद आया जब उनके पिता खेत तयार करना शुरू कर रहे थे । उस समय वे एक आनंद भरे ध्यान में पड़ गये थे और उन्हे ऐसा महसूस हुआ कि समय स्थित हो गया है ।
[बदलें] ज्ञान प्राप्ति
कठोर तपस्या छोड़कर उन्होने आर्य अष्टांग मार्ग ढूंढ निकाला, जो बीच का मार्ग भी कहलाता जाता है क्योंकि यह मार्ग दोनो तपस्या और असंयम की पाराकाष्टाओं के बीच में है । अपने बदन में कुछ शक्ति डालने के लिये, उन्होने एक बकरी-वाले से कुछ दूध ले लिया । वे एक पीपल के पेड़ (जो अब बोधि पेड़ कहलाता है) के नीचे बैठ गये प्रतिज्ञा करके कि वे सत्य जाने बिना उठेंगे नहीं । ३५ की उम्र पर, उन्होने बोधि पाई और वे बुद्ध बन गये । उनका पहिला धर्मोपदेश वाराणसी के पास सरनाथ मे था ।
[बदलें] हिन्दू धर्म में बुद्ध
हिन्दू धर्म में बाद में बुद्ध को विष्णु का एक अवतार माना गया है । लेकिन इसे इस तरीके से पेश किया गया है जिसे ज़्यादातर बौद्ध अस्वीकार्य और बेहद अप्रिय मानते हैं । कुछ पुराणों में ऐसा कहा गया है कि भगवान विष्णु ने बुद्ध अवतार इसलिये लिया था जिससे कि वो "झूठे उपदेश" फैलाकर "असुरों" को सच्चे वैदिक धर्म से दूर कर सकें, जिससे देवता उनपर जीत हासिल कर सकें । इसका मतलब है कि बुद्ध तो "देवता" हैं, लेकिन उनके उपदेश झूठे और ढ़ोंग हैं । ये बौद्धों के विश्वास से एकदम उल्टा है : बौद्ध लोग गौतम बुद्ध को कोई अवतार या देवता नहीं मानते, लेकिन उनके उपदेशों को सत्य मानते हैं । कुछ हिन्दू लेखकों (जैसे जयदेव) ने बाद में ये भी कहा है कि बुद्ध विष्णु के अवतार तो हैं, लेकिन विष्णु ने ये अवतार झूठ का प्रचार करते के लिये नहीं बल्कि अन्धाधुन्ध कर्मकाण्ड और वैदिक पशुबलि रोकने के लिये किया था ।
[बदलें] शिक्षा
बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक
- सम्यक
- सम्यक
- सम्यक