हनुमान
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हनुमान जी अजर, अमर, गुणनिधि, सुत होहु यह वरदान माता जानकी जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में दिया था। स्वयं भगवान् श्रीराम ने कहा था कि- सुन कपि तोहि समान उपकारी, नहि कोउ सुर, नर, मुनि, तुनधारी। बल और बुद्धि के प्रतीक हनुमान जी राम और जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। पवनसुत हनुमानजी भगवान् शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। अञ्जना के पुत्र हनुमानजी का अवतार भगवान् राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। बाल्यावस्था में भूख से व्याकुल होकर उन्होंने उदयकाल के समय सूर्य की लालिमा को फल समझकर उसे ही मुँह में दबा लिया था। देवताओं के अनुरोध करने पर उन्होंने सूर्य को छोड़ा। इसी दौरान इन्द्र के वज्र प्रहार से बजरंगबली की ठुड्डी (हनु) टूट गयी थी जिससे उनका नाम हनुमान पड़ा। हनुमान जी की अपरिमित शक्ति और बुद्धि से प्रभावित देवताओं ने उसी समय उन्हें कई वरदान दिये। ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को छेद नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि मैं इसे अपने तेज का शतांश प्रदान करता हूँ, साथ ही शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री करायी और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, यह सर्वविदित है।